Friday, November 9, 2012

उसकी डायरी के पन्ने.....


उसकी डायरी के पन्ने, जो मुड़े हुए हैं,
कुछ खूबसूरत लम्हें हैं जो जुड़े हुए हैं,


यादों के उजालदान से झांककर देखा तो,
तेरी तस्वीर बिखर गई, टुकड़े पड़े हुए हैं,


मेरी कोशिश ये है कि रिश्ता कायम रहे,
मगर वो हैं कि तोड़ने पे अड़े हुए हैं,


अरसे से जहां कोई आया नहीं, गुजरा नहीं,
हम तेरे इंतजार में उसी मोड़ पर खड़े हुए हैं,


वक्त के इशारों को जो समझे नहीं, वक्त रहते,
वो आज भी किसी खुदा के दर पर खड़े हुए हैं...

Wednesday, September 26, 2012

जख्म भर भी जाएं...


नितिन आर. उपाध्याय

जख्म भर भी जाएं, निशान रह ही जाते हैं,
याद आए तो आंखों में आंसू आ ही जाते हैं,


वो लाख कहें कि भूल गए हैं तुमको, फिर भी,
उस नज़र के कारवां मुझ तक आ ही जाते हैं,


पहले जो छिप जाते थे आहट से ही हमारी,
अब क्यों जाने-अनजाने सामने आ ही जाते हैं,


मेरे सवालों पर वो हाल है उसका, क्या कहूं,
वो चुप रहे तो भी चेहरे पर जवाब आ ही जाते हैं,


जो उलझे रहते हैं आइनों से ही हमेशा,
अक्सर वो अंधेरे में अकेले रह जाते हैं.....

Saturday, September 22, 2012

किताब में रखा फूल...


नितिन आर. उपाध्याय

वो जो फूल अरसे से किताबों में रखा है,
उसे अब आजाद कर देना, 
रंग, खुश्बू सब जा चुकी है उसकी भी, 
उसे अब आजाद कर देना...

वो रंग उसका जो अब,
कागजों में उतर चुका होगा,
वो खुश्बू जो हवाओं के साथ बह गई होगी, 
वो गीलापन उसका जो शायद,
तेरी आंखों की तरह ही सूख गया होगा,
उसे अब आजाद कर देना...

जब रखा था उसे वो दिन थे प्यार के, 
वो दिन थे इजहार के, प्यार भरी तकरार थे,
अब वो दिन नहीं, वो बात नहीं,
वो प्यार नहीं, जज्बात नहीं,
फिर क्यों वो रहे कैद निशानी की तरह,
उसे अब आजाद कर देना....

शायद इस फूल की ही बद्दुआएं होंगी, 
हमने इसके साथ जो खताएं की थी,
वे ही हमारे बीच में आई होंगी, 
उस फूल का क्या कसूर था, 
मेरी-तुम्हारी इस भूल की माफी मांगकर,
उसे अब आजाद कर देना....

थोड़ा और चलो....


नितिन आर. उपाध्याय

ये सियाह रात कट जाएगी, थोड़ा और चलो,
आगे सहर भी आएगी, थोड़ा और चलो,


यूं बैठे रहने से कभी फासले कम नहीं होंगे,
मंजिल नजर आएगी, थोड़ा और चलो,


उदासियों के दरख्तों पर बहार भी आएगी,
इश्क की राहों पर थोड़ा और चलो,


किसी के दिल तक पहुंचना आसान नहीं है,
उसकी आंखों की गहराई में थोड़ा और चलो,


अश्कों की बारिश में भिगने लगोगे अभी,
यादों के मौसम में थोड़ा और चलो...

Tuesday, August 28, 2012

कौन कहता आज तुम सुंदर नहीं हो....

कौन कहता आज तुम सुंदर नहीं हो....

किसने कहा चेहरा उतरा सा है,
किसने कहा रंग भी फीका सा है,
कौन कहता हंसी फिकी सी है,
किसने कहा लटें भी उलझी सी हैं,
तुम किसी हाल में कमतर नहीं हो,
कौन कहता आज तुम सुंदर नहीं हो....


खुशियों के पीछे पागल जो है,
वो दुनिया विरह वेदना क्या जानें,
चेहरे पर जिसके बनावट की मुस्कान,
वो प्रेम में सिसकना क्या जानें,
किसी अप्सरा से आज तुम बेहतर कहीं हो,
कौन कहता आज तुम सुंदर नहीं हो.....


देखो विरह ने आज क्या सिंगार किया है,
आंखों को सूर्ख, चेहरे को बुझा सा रंग दिया है,
किस्मत से किसी को प्रेम की ये पीड़ा है मिलती,
किस्मत ने ही तुमको, मुझको ये तोहफा दिया है,
कोई विरहणी नहीं, आज तुम जैसे दुल्हन नई हो,
कौन कहता है आज तुम सुंदर नहीं हो.....

Thursday, February 2, 2012

मेरी जुस्तजू...


मेरी जुस्तजू को कोई समझ सका न कभी,
हर एक को बस आवारगी ही नज़र आई,

मेरी उदास आँखों में झांक कर देखा जो उसने तो,
कुछ अपनी, कुछ ज़माने की खता नज़र आई.....

Friday, January 13, 2012

मृत्यु, तुम अबूझ पहेली हो...

नितिन आर. उपाध्याय

क्रूर, कठिन, कठोर तुम,
जीवन का अंतिम पड़ाव,
सांसों का अंतिम छोर तुम,
भरी सारी दुनिया पर भारी,
एक तुम अकेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो...

जीवन क्या? सत्य या सपना,
कभी समझ नहीं कुछ पाएंगे,
कुछ पाया, कुछ रह गया पाना,
इसी उधेड़बुन में दिन गुजर जाएंगे,
इसी सत्य, स्वप्न और असत्य के परे,
खड़ी तुम अविचल अकेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो,

जिंदगी पर खड़े हैं प्रश्न कई,
हर दिन एक परिभाषा नई,
जीवन पथ का हर साथी,
एक दिन छोड़ कर जाएगा,
सच है किसका साथ यहां
हर क्षण रह पाएगा,
लेकिन तुम सांसों की संगिनी,
प्राणों की अंतिम सहेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो....

जब तक खुश हूं, जीवित हूं मैं,
तुम असत्य ही हो,
जब सत्य पथ से पांव डिगे,
तुम भयंकर स्वप्न सी लगती हो,
जब सपने टूटें, साथी छूटें,
हाथ छिटक कोई जाए,
जीवन के मधु रस से भी,
जब स्वाद कटु सा आए,
उस क्षण तुम अंतिम सत्य हो,
उस क्षण तुम पसंद पहली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो,


कितने रूप, कितने रंग,
कितने भाव तुम्हारे,
तुम हर पल हर जगह,
शक्तिशाली तुम, समर्थ हर तरह,
क्रूर, कठिन, कठोर तुम,
फिर भी नित्य नवेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो.....