नितिन आर. उपाध्याय
वो जो फूल अरसे से किताबों में रखा है,
उसे अब आजाद कर देना,
रंग, खुश्बू सब जा चुकी है उसकी भी,
उसे अब आजाद कर देना...
वो रंग उसका जो अब,
कागजों में उतर चुका होगा,
वो खुश्बू जो हवाओं के साथ बह गई होगी,
वो गीलापन उसका जो शायद,
तेरी आंखों की तरह ही सूख गया होगा,
उसे अब आजाद कर देना...
जब रखा था उसे वो दिन थे प्यार के,
वो दिन थे इजहार के, प्यार भरी तकरार थे,
अब वो दिन नहीं, वो बात नहीं,
वो प्यार नहीं, जज्बात नहीं,
फिर क्यों वो रहे कैद निशानी की तरह,
उसे अब आजाद कर देना....
शायद इस फूल की ही बद्दुआएं होंगी,
हमने इसके साथ जो खताएं की थी,
वे ही हमारे बीच में आई होंगी,
उस फूल का क्या कसूर था,
मेरी-तुम्हारी इस भूल की माफी मांगकर,
उसे अब आजाद कर देना....
वो रंग उसका जो अब,
ReplyDeleteकागजों में उतर चुका होगा,
वो खुश्बू जो हवाओं के साथ बह गई होगी,
वो गीलापन उसका जो शायद,
तेरी आंखों की तरह ही सूख गया होगा,
उसे अब आजाद कर देना...
बहुत उम्दा ख़याल की रचना
वाकई कुछ चीज़ों को समय के साथ accept कर लेने मे ही सबकी भलाई है