Wednesday, September 26, 2012

जख्म भर भी जाएं...


नितिन आर. उपाध्याय

जख्म भर भी जाएं, निशान रह ही जाते हैं,
याद आए तो आंखों में आंसू आ ही जाते हैं,


वो लाख कहें कि भूल गए हैं तुमको, फिर भी,
उस नज़र के कारवां मुझ तक आ ही जाते हैं,


पहले जो छिप जाते थे आहट से ही हमारी,
अब क्यों जाने-अनजाने सामने आ ही जाते हैं,


मेरे सवालों पर वो हाल है उसका, क्या कहूं,
वो चुप रहे तो भी चेहरे पर जवाब आ ही जाते हैं,


जो उलझे रहते हैं आइनों से ही हमेशा,
अक्सर वो अंधेरे में अकेले रह जाते हैं.....

Saturday, September 22, 2012

किताब में रखा फूल...


नितिन आर. उपाध्याय

वो जो फूल अरसे से किताबों में रखा है,
उसे अब आजाद कर देना, 
रंग, खुश्बू सब जा चुकी है उसकी भी, 
उसे अब आजाद कर देना...

वो रंग उसका जो अब,
कागजों में उतर चुका होगा,
वो खुश्बू जो हवाओं के साथ बह गई होगी, 
वो गीलापन उसका जो शायद,
तेरी आंखों की तरह ही सूख गया होगा,
उसे अब आजाद कर देना...

जब रखा था उसे वो दिन थे प्यार के, 
वो दिन थे इजहार के, प्यार भरी तकरार थे,
अब वो दिन नहीं, वो बात नहीं,
वो प्यार नहीं, जज्बात नहीं,
फिर क्यों वो रहे कैद निशानी की तरह,
उसे अब आजाद कर देना....

शायद इस फूल की ही बद्दुआएं होंगी, 
हमने इसके साथ जो खताएं की थी,
वे ही हमारे बीच में आई होंगी, 
उस फूल का क्या कसूर था, 
मेरी-तुम्हारी इस भूल की माफी मांगकर,
उसे अब आजाद कर देना....

थोड़ा और चलो....


नितिन आर. उपाध्याय

ये सियाह रात कट जाएगी, थोड़ा और चलो,
आगे सहर भी आएगी, थोड़ा और चलो,


यूं बैठे रहने से कभी फासले कम नहीं होंगे,
मंजिल नजर आएगी, थोड़ा और चलो,


उदासियों के दरख्तों पर बहार भी आएगी,
इश्क की राहों पर थोड़ा और चलो,


किसी के दिल तक पहुंचना आसान नहीं है,
उसकी आंखों की गहराई में थोड़ा और चलो,


अश्कों की बारिश में भिगने लगोगे अभी,
यादों के मौसम में थोड़ा और चलो...