Wednesday, September 26, 2012

जख्म भर भी जाएं...


नितिन आर. उपाध्याय

जख्म भर भी जाएं, निशान रह ही जाते हैं,
याद आए तो आंखों में आंसू आ ही जाते हैं,


वो लाख कहें कि भूल गए हैं तुमको, फिर भी,
उस नज़र के कारवां मुझ तक आ ही जाते हैं,


पहले जो छिप जाते थे आहट से ही हमारी,
अब क्यों जाने-अनजाने सामने आ ही जाते हैं,


मेरे सवालों पर वो हाल है उसका, क्या कहूं,
वो चुप रहे तो भी चेहरे पर जवाब आ ही जाते हैं,


जो उलझे रहते हैं आइनों से ही हमेशा,
अक्सर वो अंधेरे में अकेले रह जाते हैं.....

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