Friday, January 13, 2012

मृत्यु, तुम अबूझ पहेली हो...

नितिन आर. उपाध्याय

क्रूर, कठिन, कठोर तुम,
जीवन का अंतिम पड़ाव,
सांसों का अंतिम छोर तुम,
भरी सारी दुनिया पर भारी,
एक तुम अकेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो...

जीवन क्या? सत्य या सपना,
कभी समझ नहीं कुछ पाएंगे,
कुछ पाया, कुछ रह गया पाना,
इसी उधेड़बुन में दिन गुजर जाएंगे,
इसी सत्य, स्वप्न और असत्य के परे,
खड़ी तुम अविचल अकेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो,

जिंदगी पर खड़े हैं प्रश्न कई,
हर दिन एक परिभाषा नई,
जीवन पथ का हर साथी,
एक दिन छोड़ कर जाएगा,
सच है किसका साथ यहां
हर क्षण रह पाएगा,
लेकिन तुम सांसों की संगिनी,
प्राणों की अंतिम सहेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो....

जब तक खुश हूं, जीवित हूं मैं,
तुम असत्य ही हो,
जब सत्य पथ से पांव डिगे,
तुम भयंकर स्वप्न सी लगती हो,
जब सपने टूटें, साथी छूटें,
हाथ छिटक कोई जाए,
जीवन के मधु रस से भी,
जब स्वाद कटु सा आए,
उस क्षण तुम अंतिम सत्य हो,
उस क्षण तुम पसंद पहली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो,


कितने रूप, कितने रंग,
कितने भाव तुम्हारे,
तुम हर पल हर जगह,
शक्तिशाली तुम, समर्थ हर तरह,
क्रूर, कठिन, कठोर तुम,
फिर भी नित्य नवेली हो,
मृत्यु तुम अबूझ पहेली हो.....

5 comments:

  1. बहुत अच्‍छी लगी कवि‍ता....बि‍ल्‍कुल सत्‍य। बधाई।

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  2. सर, अबूझ पहेली हो तुम !!!

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  3. nitinji..... aap to kavi se mahakavi ki taraf badh rahe hain.....mritu to shashwat aur ekmatra satya hai.... lekin us par itni sadhi hui kavita likhna mushkil kaam hai jo aapne kiya hai.... badhai.... buck up...

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