Wednesday, March 20, 2013

मुझे याद हैं अब तक वो सारी बातें...


तेरे साथ पटरियों पर दूर तक चलना,
गिरते हुए हाथ थामकर संभलना,
दूरियों पर रोना, मिलने पर मचलना,
मेरे रास्तों पर तेरा पलकें बिछाना, 
वो लंबा सा इंतजार, वो छोटी मुलाकातें,
मुझे याद हैं अब तक वो सारी बातें...
मुझे याद हैं....

महफिल में अजनबी सा जताना,
मुझे देखकर निगाहें झुकाना,
सवालों पर तेरी वो लंबी सी चुप्पी, 
गुस्से पर मेरे वो तेरा मुस्कुराना, 
अक्सर जो गुजरी तन्हाई की रातें,
मुझे याद हैं अब तक वो सारी बातें,
मुझे याद हैं....

कभी रुठ कर दिनों तक ना मिलना,
फिर मिलते ही मुझसे रोकर लिपटना,
हाथों में हाथ और होठों पर चुप सी, 
खामोश आलम में तुझको वो तकना,
भुलाए नहीं भूलती वो दिलकश सी बातें,
मुझे याद हैं अब तक वो सारी बातें,
मुझे याद हैं.....


बकलम खुद....

Thursday, March 7, 2013

पुरानी तस्वीर...



आज पुरानी डायरी से एक तस्वीर मिली,
कुछ धुंधली यादों के साथ,
कुछ गुजरी बातों के साथ,
कब सहेजा था ठीक से याद नहीं,
मगर तस्वीर अब भी नई सी थी,
सब के चेहरे खिले हुए थे,
रंग भी मुरझाए नहीं थे,
आंखें जैसे अभी बोल पड़ेंगी,
हंसी भी ऐसी मानो अभी फूट पड़ेगी,
तस्वीर में मौजूद हर शख्स जैसे,
ठहरा हुआ है वहीं अब तक,
जैसे कोई जिंदा रहे जहन में बरसों तक,
रिश्ते भले ही बदल चुके थे लेकिन,
तस्वीर अब भी वही थी,
वैसी ही मासूम, वैसी ही जिंदादिल,
जैसे तस्वीर में मौजूद मेरे दोस्त थे,
मगर अब की तस्वीर बदल चुकी है,
अब वो दोस्त कहां हैं?
अब तो जिम्मेदारियों से झुके कंधे हैं,
अब तो जिंदगी की अंधी दौड़ में,
सब के सब खो गए हैं कहीं,
जैसे सुबह हरी घास पर गिरी औस,
दोपहर की तेज धूप में गुम हो जाती है....

(सभी उन मित्रों को समर्पित, जो मेरे जीवन का अटूट हिस्सा रहे हैं।)

बकलम खुद...

Monday, February 25, 2013

दिल को अब अपने वो बहलाएंगे क्या...


दिल को अब अपने वो बहलाएंगे क्या,
किसी को अपनी कहानी सुनाएंगे क्या,


तेरे बिना भी जी रहे हैं हम हंसते-हंसते,
इसके अलावा और करिश्मा दिखलाएंगे क्या,


वो टूटे रिश्तों पर लाख डाल दें लफ्जों के कफन,
लेकिन दोस्तों से भी अपने हकीकत छुपाएंगे क्या,


जो खुद डूबने का इरादा करके उतरें हो दरिया में,
उनको कश्तियां और किनारे भी अब बचाएंगे क्या,


वो कामयाब हो ही जाएं भले मुझे भूल जाने में,
मगर आइने में खुद से आंखें मिला पाएंगे क्या,


लोगों को तो कुछ भी बता देंगे बहाना दूरियों का,
तन्हाई में मगर दिल को अपने समझाएंगे क्या....


बकलम खुद...

Sunday, January 27, 2013

वो पहली मोहब्बत थी.....


वो पहली मोहब्बत थी.....

बातों में खुशी,
आंखों में चमक,
अदाओं में नजाकत थी,
वो पहली मोहब्बत थी...

इंतजार था प्यारा,
दिल का सहारा,
दीदार की हसरत थी,
वो पहली मोहब्बत थी...

वादों की झड़ी,
यादों की लड़ी,
बातों की ही दौलत थी,
वो पहली मोहब्बत थी...

जब मिलते थे,
दिल खिलते थे,
गुलजारों सी रौनक थी,
वो पहली मोहब्बत थी...

मैं उस पर फिदा हुआ,
वो मेरा खुदा हुआ,
उसका दीदार ही इबादत थी,
वो पहली मोहब्बत थी...

वो रूठ गया,
दिल टूट गया,
जीने की ना चाहत थी,
वो पहली मोहब्बत थी...


Friday, November 9, 2012

उसकी डायरी के पन्ने.....


उसकी डायरी के पन्ने, जो मुड़े हुए हैं,
कुछ खूबसूरत लम्हें हैं जो जुड़े हुए हैं,


यादों के उजालदान से झांककर देखा तो,
तेरी तस्वीर बिखर गई, टुकड़े पड़े हुए हैं,


मेरी कोशिश ये है कि रिश्ता कायम रहे,
मगर वो हैं कि तोड़ने पे अड़े हुए हैं,


अरसे से जहां कोई आया नहीं, गुजरा नहीं,
हम तेरे इंतजार में उसी मोड़ पर खड़े हुए हैं,


वक्त के इशारों को जो समझे नहीं, वक्त रहते,
वो आज भी किसी खुदा के दर पर खड़े हुए हैं...

Wednesday, September 26, 2012

जख्म भर भी जाएं...


नितिन आर. उपाध्याय

जख्म भर भी जाएं, निशान रह ही जाते हैं,
याद आए तो आंखों में आंसू आ ही जाते हैं,


वो लाख कहें कि भूल गए हैं तुमको, फिर भी,
उस नज़र के कारवां मुझ तक आ ही जाते हैं,


पहले जो छिप जाते थे आहट से ही हमारी,
अब क्यों जाने-अनजाने सामने आ ही जाते हैं,


मेरे सवालों पर वो हाल है उसका, क्या कहूं,
वो चुप रहे तो भी चेहरे पर जवाब आ ही जाते हैं,


जो उलझे रहते हैं आइनों से ही हमेशा,
अक्सर वो अंधेरे में अकेले रह जाते हैं.....

Saturday, September 22, 2012

किताब में रखा फूल...


नितिन आर. उपाध्याय

वो जो फूल अरसे से किताबों में रखा है,
उसे अब आजाद कर देना, 
रंग, खुश्बू सब जा चुकी है उसकी भी, 
उसे अब आजाद कर देना...

वो रंग उसका जो अब,
कागजों में उतर चुका होगा,
वो खुश्बू जो हवाओं के साथ बह गई होगी, 
वो गीलापन उसका जो शायद,
तेरी आंखों की तरह ही सूख गया होगा,
उसे अब आजाद कर देना...

जब रखा था उसे वो दिन थे प्यार के, 
वो दिन थे इजहार के, प्यार भरी तकरार थे,
अब वो दिन नहीं, वो बात नहीं,
वो प्यार नहीं, जज्बात नहीं,
फिर क्यों वो रहे कैद निशानी की तरह,
उसे अब आजाद कर देना....

शायद इस फूल की ही बद्दुआएं होंगी, 
हमने इसके साथ जो खताएं की थी,
वे ही हमारे बीच में आई होंगी, 
उस फूल का क्या कसूर था, 
मेरी-तुम्हारी इस भूल की माफी मांगकर,
उसे अब आजाद कर देना....