Tuesday, July 5, 2011

दिल, दोस्ती और प्यार....


नितिन आर. उपाध्याय
साइकिल हाथ में लिए राजा गली से गुजर रहा था। गली के ठीक बीच में पहुंचते ही उसके कदम ठिठक गए। चलती साइकिल को खड़ा किया और कुछ सुधारने लगा। साइकिल की ओट से सामने वाले घर में झांकने की लगातार कोशिश कर रहा था। बमुश्किल दो मिनट वो बैठा रहा साइकिल की आड़ में फिर पकड़े जाने के डर से उठा और चल दिया।
गली के बीच वाले मकान में रहती थी गौरी जो कभी उसके साथ पढ़ती थी। अब वो गल्र्स स्कूल में थी और राजा पुराने स्कूल में ही रह गया। गौरी की एक झलक देखने के लिए वो रोज तीन चार मोहल्लों को लांघकर इस गली में आता था। कभी-कभी नुक्कड़ की दुकान पर उससे सामना हो जाता और मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान होता तो राजा का दिन बन जाता। उस दिन वो हवा में होता था। महीनों गुजर गए। सिलसिला चलता रहा। दोस्तों ने समझाया राजा रोज चक्कर लगाने से कुछ नहीं होगा, एक दिन जाकर बात तो करनी ही पड़ेगी।
दोस्तों के समूह में यह एक बड़ा चिंता का विषय था कि राजा के प्रेम रोग का इलाज कैसे किया जाए। सभी इस गहन चिंता में थे। महेश नामक एक मित्र ने गौरी की किसी सहेली मीना से दोस्ती कर ली। अब राजा की जिंदगी में गौरी के बाद सबसे ज्यादा कोई महत्वपूर्ण था तो वो था महेश। महेश ने उसे काफी हिम्मत बंधाई, मीना के जरिए गौरी तक पहुंचेंगे। राजा के सपनों को तो मानो पंख लग गए। अब गौरी की गली में चक्कर काटना छोड़ दिया। अब सुबह से महेश के घर के चक्कर लगने लगे।
महेश और मीना की दोस्ती भी रंग ले रही थी। महेश के लिए राजा की दोस्ती अब वैसी नहीं थी, राजा के लिए महेश महत्वपूर्ण का और महेश के लिए मीना। राजा, महेश की खुशामद में लगा रहता। जो पैसे उसने इस उम्मीद में बचाए थे कि गौरी से जब दोस्ती होगी तो उसे तोहफे देने में काम आएंगे, वो महेश को मनाने में ही खर्च हो गए।
महेश ने अंतत: भरोसा दिलाया।
"चिंता मत कर मैं मीना से कल ही बात करता हूं, वो तेरे लिए गौरी से बात करेगी।"
राजा आसमान में उडऩे लगा। दिन कटने का इंतजार, कभी मंदिर में जाता, कभी सोने की कोशिश करता लेकिन हर प्रयास में असफल।
जैसे-तैसे रात कटी, सूरज निकला। राजा फटाफट तैयार होकर स्कूल के लिए भागा। स्कूल से लौटा, बेग पटका और सीधे महेश के घर।
महेश घर की छत पर अकेला खड़ा था। राजा सीधे गलियारे से होते हुए सीढिय़ों को लांघते हुए तेजी से उसके पास पहुंचा।
उसके सारे सवाल चेहरे पर ही दिख रहे थे। वो कुछ बोलता इससे पहले ही महेश बोल पड़ा।
"तू मेरा साथ छोड़ दे, मुझे अब नहीं रहना तेरे साथ। "
"क्यों"
"क्यों से क्या मतलब? तेरे चक्कर में आज मेरा और मीना का झगड़ा हो गया। मीना ने कहा है वो गौरी से कोई बात नहीं करेगी। मैं उस पर इसके लिए ज्यादा जोर दूंगा तो वो मेरी दोस्ती भी छोड़ देगी। तू अपनी बात खुद कर ले। और अभी तू जा, मीना आने वाली है उसने तूझे देखा तो ज्यादा गुस्सा होगी। "
राजा धम्म से जमीन पर आ गया। भारी मन से सीढिय़ों से उतरा, घर की ओर चल दिया।
घर पहुंचते ही उसने साइकिल उठाई, फिर उस तंग गली में पहुंच गया और बीच वाले मकान के सामने जाते ही उसकी साइकिल फिर रुक गई। साइकिल की आड़ से फिर गौरी के घर में झांकने लगा।