Friday, June 24, 2011

ये बारिश भी अजीब है....



नितिन आर. उपाध्याय
बादल घुमड़ रहे थे, सड़कों पर एकाएक बड़ी-बड़ी बूंदें गिरने लगीं। रूपाली साड़ी का पल्लू सिर पर रखे, तेज कदमों से घर की ओर दौड़ी। तभी रास्ते में दो जानी पहचानी आंखों ने उसकी नजरों को थाम लिया। बारिश तेज होती जा रही थी और उसके कदम धीमें। धीरे से दरवाजा खोलकर घर के भीतर आ गई। बाहर की बारिश बाहर ही रह गई। लेकिन उन आंखों का गिलापन उसे याद आ रहा था। रूपाली की आंखों के आगे सारे दृश्य दौड़ रहे थे। एक बारिश बाहर हो रही थी, दूसरी रूपाली की आंखों से। 
कोई छह महीने पहले कि ही तो बात है जब रूपाली और माधव के प्यार को घर वालों की रजामंदी मिल गई थी। दोनों ही बहुत खुश थे। माधव मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का था और रूपाली एक पोस्टमास्टर की लड़की। दोनों की ही आर्थिक स्थिति सामान्य दर्जे की थी। शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। तभी एक रात रूपाली के पिता को हार्ट अटैक आ गया। तैयारियां धरी रह गईं। शादी के लिए संभाला हुआ पैसा इलाज में खर्च हो गया। डॉक्टर कहते हैं बायपास सर्जरी करनी होगी। बहुत पैसा खर्च होगा। कोई मददगार नहीं था। माधव की भी हैसीयत इतनी नहीं थी।
 समाज का नियम होता है, जब कोई अमीर मुसीबत में पड़ता है तो लोग बिना शर्त उसकी मदद करते हैं, इसे व्यवसायिक भाषा में इंवेस्टमेंट कहते हैं लेकिन गरीब के साथ हाथोंहाथ सौदे बाजी होती है। आगे का क्या भरोसा कुछ बचे,  न बचे। दूर के एक रिश्तेदार मदद के लिए आगे आए। जो उसी तरह का एक सौदा था। रूपाली को अपने एक विकलांग बेटे के लिए मांग लिया। शादी का सारा खर्च और पिताजी के इलाज का भी पूरा वादा किया। प्यार से कुछ हासिल नहीं होता लेकिन इस सौदे में पिता की जान बच रही थी। रूपाली ने कुर्बानी का रास्ता चुना। दो महीने पहले शादी हुई। ससुराल वालों ने वादा निभाया और रूपाली के पिता का ऑपरेशन करवाया। आज ऑपरेशन है। मुंबई के एक बड़े अस्पताल में।
 कुर्सी पर बैठी रूपाली आज माधव को देखकर दु:खी थी। उसे दो साल के रिश्ते में गुजरा एक-एक पल याद आ रहा था। हर याद के साथ आंखों से आंसुओं की झड़ी भी। धीरे-धीरे यादों का सावन गुजर गया, आंसू थम गए। वो उठी और काम-काज में लग गई। काम करते-करते फिर कब समय गुजर गया, पता नहीं चला। टेलीफोन की एक घंटी ने उसका ध्यान बंटाया। घर के सन्नाटे को तोड़ती घंटी की आवाज ने माहौल फिर बदल दिया। 
हैलो...
हैलो रूपा...रूपाली के बड़े भाई की आवाज थी। 
रूपा, बाबूजी का ऑपरेशन हो गया, सब ठीक है, डॉक्टर कह रहे हैं अब खतरा नहीं है। बाबूजी ठीक हो गए रूपा...। 
भाई उधर से बोल रहा था लेकिन रूपाली के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। बस फिर एक बारिश शुरू हो गई। आंखों से खुशियों की बारिश। उसने आज पहली बार बारिश के मौसम को इतने नजदीक से महसूस किया था। 

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