Saturday, June 18, 2011

दुश्मन भी, दोस्त भी चांद


नितिन आर. उपाध्याय
आज की चांदनी रात उसे झुलसा रही थी। रोज की तरह छत पर वो अकेला बैठा चांद को निहार रहा था, लेकिन चांद से आज वो चेहरा गायब था, जो वो रोज देखा करता था। जो चांद उसे अपने में वो खूबसूरत तस्वीर दिखाता था, वो सबसे अच्छा दोस्त हुआ करता था कभी लेकिन आज दुश्मन से भी बढ़कर लग रहा था।
ये आजकल का प्यार भी अजीब है, इतने दिनों से जो चेहरा चांद में रोज दिखता था, आज शाम को झगड़ा हुआ और रात को ही नजारा बदल गया। वो रह-रह कर पुराने दिन याद कर रहा था, लाख कोशिश कर रहा था लेकिन हर कोशिश नाकाम। निराश, हताश, उदास और अनमने मन से वो छत पर ही सो गया।
तभी अचानक पास की छत से किसी की खनकदार हंसी की आवाज आई। उठकर देखा तो एक खूबसूरत लड़की अपनी मां से बातें कर रही थी। नजरें मिली, मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान हुआ। दो घड़ी टकटकी लगाए उस चेहरे को देखता रहा, उदासी के बादल छंट गए, फिर चेहरे पर पहले की तरह प्रेम की लाली चमक उठी। उसने घूमकर चांद को देखा तो चांद भी फिर दोस्त बन चुका था। फिर एक तस्वीर चांद में उभरने लगी, बस चेहरा बदल चुका था।

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