Monday, August 16, 2010

क्या आपके जीवन में कभी वनवास आया है?

बचपन में जो कहानियां सुनीं, उनमें सबसे खास थी रामायण। मेरी नजर में रामायण जीवन के संघर्ष की कहानी है, विपरित परिस्थितियों में एक राजकुमार का जंगल में जाना, राक्षसों से लडऩा, पत्नी का हरण और फिर रावण से युद्ध। आज जब मैं वयस्क हूं तो रामायण को फिर एक नए नजरिए से देख रहा हूं। अब मेरे लिए यह केवल संघर्षों की कहानी नहीं है बल्कि यह जीवन का एक नजरिया बन चुकी है। हर परिस्थिति में लाइफ मैनेजमेंट की एक किताब बन चुकी है। रामायण का टर्निंग पाइंट है राम का वनवास। दरअसल यह रामायण हम सब के जीवन में घट रही है। बस इसे पहचाना नहीं जा रहा है। हर आदमी को जीवन में एक बार वनवास जरूर जाना पड़ता है। चाहे राजतिलक के पहले या इसके बाद।
राजतिलक के लिए जरूरी नहीं है कि हमें कोई राजपाठ ही मिले। यह जीवन में आती दिख रही सफलतओं के संकेत हैं। आज भी हमारे जीवन के कई फैसलें रातोंरात बदल जाते हैं। सुबह के लिए कुछ और सोचा था लेकिन सूरज उगने के पहले ही परिस्थितियां बदल जाती हैं। यह भी एक तरह का वनवास है। हम जीवन में कई बार ऐसे वनवासों से गुजरते हैं लेकिन उसे पहचान नहीं पाते। युवा पीढ़ी के साथ यह समस्या सबसे ज्यादा है। फैसला हमारे खिलाफ हुआ नहीं कि हम टूट गए। परीक्षा से लेकर प्रेम तक किसी भी जगह थोड़ी असफलता दिल में इतनी घर कर जाती है कि जीवन से मोह खत्म हो जाता है। रामायण पढ़कर कर एक बात हम बहुत अच्छे से सीख सकते हैं कि हमें जीवन में हर तरह की परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए। राम दोनों स्थितियों के लिए तैयार थे, राजतिलक भी और वनवास भी। उनके हिस्से में जो आया, उन्होंने अपने भविष्य की प्लानिंग उसी तरह कर ली। सफलता और असफलता हमारे हाथ में नहीं है, हमारे हाथ में यह है कि हम कैसे उसे बेहतर बना सकते हैं। राम को वनवास मिला तो वे टूटे नहीं, राजतिलक के लिए जो योजना उनके दिमाग में अगर आई भी होगी तो वे उसके बिखरने से विचलित नहीं हुए। बल्कि उसे नियति मानकर वनवास को सहर्ष स्वीकार किया और उसमें भी अपने फायदे कि चीज देखी।
आज कई लोग इस बात से पीडि़त हैं कि उन्हें वह नहीं मिला जिस पर उनका हक था। हम यह सोचें कि यह हक हमें दिया किसने, जिंदगी में आपका क्या है और क्या नहीं यह फैसला प्रकृति और परमात्मा के हाथ में है। आप उसे नहीं बदल सकते। हमें बस थोड़ा सा नजरिया बदलना है जो आपको मिला नहीं, उस पर आपका अधिकार कैसे हो गया।  राम ने यही सोचा और वनवास को भी स्वीकार कर लिया। हम भी हमारे जीवन में ऐसी तैयारी रखें, जिंदगी जो दे, उसे अपना मानकर उसी को निखारने और उसी में जीने की आदत डालें, बस फिर वनवास भी वनवास नहीं लगेगा।

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